माँ बनासा का जन्म बगड़ में 1897 में पिता श्री वंशीधरजी रुंगटा और माता मोहरीदेवी के यहाँ हुआ । बचपन से माता जी का स्वभाव काफ़ी दृढ़ संकल्प वाला था । जो बात माता जी ठान लेती उसे पूरा कर के छोड़ती। बिलकुल मीरा का स्वभाव पाया था माता जी ने । इनके भी मन में प्रभु से मिलने की प्रेरणा जगी। लगा के बस अब प्रभु ही मन की व्यथा का इलाज कर सकते है। मात्र तेरह वर्ष की आयु में इनका विवाह श्री नर्मदा प्रसाद जी लाठ , मंडरेला के साथ होना तय हो गया । विवाह पस्चात माता जी का गृहस्थी में मन नहीं लगा । मंडरेला से कलकता और फिर कलकता से जसिडीह में माता जी काफ़ी दिनो रही। फिर वापस मंडरेला आकर रहने लगी । उन्ही दिनो बाबा जी भी मंड्रेल्ला में तपस्या कर रहे थे। तो माता जी ने भी आत्मप्रबोध करने को बाबा जी से मिलने सत्संग में पहुँची। बाबा जी ने उनकी परीक्षा लेने की सोची। बाबा जी ने उन्हें वापस भेज दिया । वो फिर गयी फिर बाबा बलदेव दास जी महाराज ने वापस भेज दिया। जब संत से अपने मन की व्यथा बताई तो बाबा जी बोले तू रोज़ रोज़ ना आया कर अब तू इक्कीस दिन बाद यहाँ आना पहले आइ तो तेरा काम नहीं होगा। संत का आदेश मान कर जब इक्कीसवाँ दिन गिन गिन के रो रो के गुज़ारे। बाबा जी ने कृपा की और सत्संग और ज्ञान की वर्षा कर के माता जी को धन्य कर दिया। माता जी ने जसिडीह आराम भवन में तपस्या की ।
बहुत ही उच्चकोटि की संत पन्ना बाई भाई मोहन लाल एवं बहन चम्पा बाई तीनो बाबू जी नर्मदा प्रसाद जी लाठ एवं माता माँ बनासा की तीन संतान थे ।
माता जी माँ बनासा की दुलारी पन्ना बाई का जन्म मेंडरेला में 5 दिसम्बर 1918 को हुआ . बचपन से प्रतिभाशाली पन्ना बाई एक बहुत अच्छी साहित्यकार थी। भक्ति रचना पद्म पराग के लिए उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से पुरस्कार भी मिला । मंडरेला , देवघर, अररिया , पटना , कलकत्ता , एवं अन्य जगहों पर सत्संग उनके तत्वावधान में हुआ करते थे । उनकी प्रेरणा से आज भी बाबा बलदेव दास जी महाराज का मंदिर कई जगहों पर चल रहा है।
पन्ना बाई का निर्वाण जनक पुर रोड पर उनके निवास स्थान में ठीक उसी तिथि को हुआ जिस तिथि को माँ बनासा जी का हुआ था